Monday, August 19, 2013

आयुर्वेदिक चूर्ण ----------------

हम इससे पहले आयुर्वेदिक दवाओं में गोलियों, वटियों भस्म व पिष्टी की जानकारी आपको देचुके हैं। आयुर्वेद के कुछ चूर्ण, जो दैनिक जीवनमें बहुत उपयोगी हैं,की जानकारी दी जा रही है-
अश्वगन्धादि चूर्ण : धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक,वीर्य वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर,शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
अविपित्तकर चूर्ण : अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन,खट्टी डकारें,कब्जियत आदिपित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं। मात्रा 3से 6ग्राम भोजन केसाथ।
अष्टांग लवणचूर्ण : स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी। मात्रा 3से 5ग्राम भोजन केपश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।
आमलकी रसायनचूर्ण : पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं।मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
आमलक्यादिचूर्ण : सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।
एलादि चूर्ण :उल्टी होना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि में लाभदायक तथा प्यास नाशक है। मात्रा 1से 3ग्राम शहद से।
गंगाधर (वृहत)चूर्ण : अतिसार, पतले दस्त, संग्रहणी, पेचिश के दस्त आदि में। मात्रा 1 से 3 ग्राम चावल का पानी या शहद से दिन में तीनबार।
जातिफलादिचूर्ण : अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी (जुकाम) को नष्ट करता है। मात्रा 1.5से 3ग्राम शहद से।
दाडिमाष्टकचूर्ण : स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3से 5ग्राम भोजन केबाद।
चातुर्जातचूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम दिन में तीन बार शहद से।
चातुर्भद्रचूर्ण : बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।
चोपचिन्यादिचूर्ण : उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।
तालीसादि चूर्ण: जीर्ण, ज्वर, श्वास, खांसी, वमन, पांडू, तिल्ली, अरुचि, आफरा, अतिसार, संग्रहणी आदि विकारों में लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम।
दशन संस्कारचूर्ण : दांत और मुंह के रोगों को नष्ट करता है। मंजन करना चाहिए।
नारायण चूर्ण :उदर रोग, अफरा, गुल्म, सूजन, कब्जियत, मंदाग्नि, बवासीर आदि रोगों में तथा पेट साफ करने के लिए उपयोगी। मात्रा 2से 4ग्राम गर्म जलसे।
पुष्यानुगचूर्ण : स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर,योनी रोग,रक्तातिसार,रजोदोष,बवासीर आदि मेंलाभकारी। मात्रा 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।
पुष्पावरोधग्नचूर्ण : स्त्रियों को मासिक धर्म न होना या कष्ट होना तथा रुके हुए मासिक धर्म कोखोलता है। मात्रा 6 से 12 ग्राम दिन में तीन समय गर्म जल के साथ।
पंचकोल चूर्ण :अरुचि, अफरा,शूल,गुल्म रोग आदिमें। अग्निवर्द्धक व दीपन पाचन। मात्रा 1 से 3 ग्राम।
पंचसम चूर्ण :कब्जियत को दूर कर पेट को साफ करता है तथा पाचन शक्ति और भूख बढ़ाता है। आम शूल वउदर शूल नाशक है। हल्का दस्तावर है। आम वृद्धि, अतिसार, अजीर्ण, अफरा, आदि नाशक है। मात्रा 5से 10ग्राम सोते समयपानी से।
यवानिखांडवचूर्ण : रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम।
लवणभास्करचूर्ण : यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण,अरुचि,पेट के रोग,मंदाग्नि,खट्टी डकार आना,भूख कम लगना।आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है।बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी। मात्रा 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व यापश्चात लें।
लवांगादि चूर्ण: वात, पित्त व कफनाशक, कंठ रोग,वमन,अग्निमांद्य,अरुचि मेंलाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार,जैसे जीमिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक। मात्रा 3ग्राम सुबह-शामशहद से।
व्योषादि चूर्ण: श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3से 5ग्राम सायंकालगुनगुने पानी से।
शतावरी चूर्ण :धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक,पौष्टिक,बाजीकर तथावीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
स्वादिष्टविरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) : हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करताहै। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3से 6ग्राम रात्रिसोते समय गर्म जल अथवा दूध से।
सारस्वत चूर्ण: दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रामें लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1से 3ग्राम प्रातः-सायं मधु या दूध से।
सितोपलादिचूर्ण : पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहाद से।
सुदर्शन (महा)चूर्ण : सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर,धातुगत ज्वरआदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है।मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।
सुलेमानी नमकचूर्ण : भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द,जी मिचलाना,खट्टी डकार काआना, दस्त साफ न आनाआदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3से 5ग्राम घी मेंमिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
सैंधवादि चूर्ण: अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।
हिंग्वाष्टकचूर्ण : पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण,मरोड़,ऐंठन,पेट मेंगुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करतीहै। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
त्रिकटु चूर्ण: खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।
त्रिफला चूर्ण: कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करताहै। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1से 3ग्राम घी व शहदसे तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।
श्रृंग्यादिचूर्ण : बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।
अजमोदादि चूर्ण: जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3से 5ग्रामप्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।
अग्निमुख चूर्ण(निर्लवण) : उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3ग्रामप्रातः-सायं उष्ण जल से।
माजून मुलैयन :हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिएश्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।

साभार:  आर्यावर्त भरतखंड संस्कृति से ....!  आलेख का लिंक.

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